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Jagannath Puri Rath Yatra 2025: जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास

On: June 24, 2025 5:53 PM
Jagannath Puri Rath Yatra

Jagannath Puri Rath Yatra 2025: मानव जीवन की महत्ता को व्यक्त करते हुए संत कबीर साहेब ने कहा था, “मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार | जैसे तरुवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार ||” अर्थात, मानव जन्म अत्यंत दुर्लभ है और यह बार-बार नहीं मिलता, जैसे पेड़ से टूटा हुआ पत्ता दोबारा शाखा पर नहीं लगता। इस अमूल्य मानव जीवन को सार्थक करने का अवसर प्रदान करती है जगन्नाथ पुरी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा, जो न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और भक्ति का प्रतीक भी है। आइए, वर्ष 2025 में होने वाली जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के बारे में विस्तार से जानें, इसके ऐतिहासिक महत्व, पौराणिक कथाओं, और तत्वज्ञान पर आधारित सत्य को समझें।

Table of Contents

जगन्नाथ धाम रथ यात्रा विशेष 2025: मुख्य बिंदु

  • तिथि: 26 जून 2025 से प्रारंभ, 5 जुलाई 2025 को समाप्त।
  • स्थान: पुरी, ओडिशा (पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र)।
  • मुख्य आकर्षण: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की रथ यात्रा।
  • ऐतिहासिक महत्व: कबीर साहेब और अन्य तत्वदर्शी संतों से जुड़ी घटनाएं।
  • आध्यात्मिक संदेश: शास्त्रानुसार भक्ति और मोक्ष का मार्ग।

जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तिथि

Jagannath Puri Rath Yatra 2025: हिंदी पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में आषाढ़ माह, शुक्ल पक्ष, द्वितीया तिथि (26 जून 2025) से शुरू होगी और देवशयनी एकादशी (5 जुलाई 2025) को समाप्त होगी। यह यात्रा ओडिशा के पुरी में आयोजित की जाएगी, जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, और श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकाली जाती है?

मान्यता के अनुसार, इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनके बड़े भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा अपने मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर (जो उनकी मौसी का घर माना जाता है) जाते हैं। यह यात्रा भक्तों के लिए दर्शन और संकट निवारण का अवसर प्रदान करती है। रथों का क्रम निम्नलिखित है:

  1. तालध्वज: बलभद्र जी का रथ, जो सबसे आगे चलता है।
  2. पद्म रथ: सुभद्रा जी का रथ।
  3. नंदी घोष: भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) का रथ, जो सबसे पीछे चलता है।

लोककथाओं के अनुसार, गुंडिचा मंदिर में पांचवें दिन लक्ष्मी जी अपने पति श्रीकृष्ण को ढूंढने आती हैं, लेकिन श्रीकृष्ण दरवाजा बंद कर लेते हैं। क्रोधित होकर लक्ष्मी जी रथ का पहिया तोड़ देती हैं और हेरा गोहिरी साही पूरी के लक्ष्मी मंदिर लौट जाती हैं। बाद में श्रीकृष्ण लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। हालांकि, यह कथा तत्वज्ञान के आधार पर पूर्ण सत्य नहीं मानी जाती। श्रीकृष्ण जैसे शक्तिशाली देवता को भ्रमण के लिए रथ की आवश्यकता नहीं, और लक्ष्मी जी सदा उनके साथ रहती हैं। यह परंपरा अधिकांशतः रंगमंचीय प्रस्तुति और लोक मान्यताओं पर आधारित है, जो वेदों और गीता के ज्ञान से मेल नहीं खाती।

जगन्नाथ पुरी मंदिर का इतिहास और सृजन की कथा

Jagannath Puri Rath Yatra: पौराणिक कथाओं के अनुसार, उड़ीसा में राजा इन्द्रदमन श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें स्वप्न में मंदिर निर्माण और गीता उपदेश की स्थापना का आदेश दिया। राजा ने मंदिर बनवाया, लेकिन समुद्र बार-बार इसे तोड़ देता था। पांच बार मंदिर टूटने के बाद राजा निराश हो गए और राजकोष भी रिक्त हो गया। तब कबीर परमेश्वर सामान्य रूप में प्रकट हुए और मंदिर निर्माण का आग्रह किया। राजा ने शुरू में मना किया, लेकिन श्रीकृष्ण के पुनः स्वप्न में आदेश देने पर कबीर साहेब से प्रार्थना की।

कबीर साहेब ने एक चबूतरे पर बैठकर भक्ति की और समुद्र को मंदिर तोड़ने से रोका। समुद्र ने विरोध किया, क्योंकि त्रेतायुग में श्रीराम ने उसे धनुष से हटने को कहा था। कबीर साहेब ने समुद्र को द्वारिका डुबोकर बदला लेने की अनुमति दी, जिसके बाद समुद्र पीछे हट गया। आज भी वह चबूतरा और उस पर बना गुंबज मौजूद है, जो इस ऐतिहासिक घटना का साक्षी है।

जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां क्यों हैं अधूरी?

मंदिर निर्माण के दौरान एक नाथपंथी सिद्ध ने मूर्ति स्थापना का आदेश दिया, लेकिन श्रीकृष्ण ने मंदिर में केवल गीता उपदेश की इच्छा जताई थी। राजा ने श्राप के भय से मूर्तियां बनवाईं, लेकिन हर बार मूर्तियां बनते ही खंडित हो जाती थीं। तब कबीर साहेब एक वृद्ध मूर्तिकार के रूप में प्रकट हुए और एक बंद कमरे में मूर्तियां बनाईं, यह शर्त रखकर कि कोई भी बारह दिन तक कमरा नहीं खोलेगा।

नाथपंथी सिद्ध ने बारहवें दिन जबरन कमरा खुलवाया, जहां श्रीकृष्ण, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियां मिलीं, लेकिन उनके हाथ-पैर अधूरे थे। कबीर साहेब तब तक अंतर्धान हो चुके थे। श्रीकृष्ण की इच्छा और सिद्ध की हठ के कारण इन अधूरी मूर्तियों की स्थापना कर दी गई। आज भी भक्त इन मूर्तियों को जगन्नाथ की लीला मानकर पूजते हैं, लेकिन यह शास्त्रों के विपरीत है।

जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत का अंत कैसे हुआ?

जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत की कुप्रथा को समाप्त करने की एक रोचक कथा है। एक पांडे ने कबीर साहेब को शूद्र समझकर धक्का दे दिया, जिसके बाद उसे कुष्ठ रोग हो गया। कोई उपचार काम नहीं आया। श्रीकृष्ण ने स्वप्न में पांडे को कबीर साहेब से क्षमा मांगने और उनके चरणामृत का सेवन करने का निर्देश दिया। पांडे ने कबीर साहेब से क्षमा याचना की और उनके चरण धोकर चरणामृत लिया। चालीस दिन तक चरणामृत पीने और स्नान करने से वह रोगमुक्त हो गया। कबीर साहेब ने छुआछूत के खिलाफ चेतावनी दी, और तब से जगन्नाथ मंदिर में यह कुप्रथा समाप्त हो गई।

संत रामपाल जी महाराज ने तत्वज्ञान के माध्यम से विश्वभर में छुआछूत को समाप्त करने का कार्य किया है, जो समाज सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

कबीर साहेब के परम शिष्य की समाधि जगन्नाथ पुरी में

गीता अध्याय 17, श्लोक 23 में तीन नामों (ओम, तत, सत) का उल्लेख है, जो क्रमशः प्रथम नाम, सतनाम, और सारनाम (मोक्ष मंत्र) को दर्शाते हैं। कबीर साहेब ने अपने शिष्य धर्मदास जी को सारनाम गुप्त रखने का आदेश दिया था। लेकिन पुत्रमोह में धर्मदास जी ने इसे अपने पुत्र को बताने की इच्छा जताई। कबीर साहेब ने उनकी इच्छा पूर्ण की और उन्हें जीवित समाधि दी। आज भी जगन्नाथ पुरी में धर्मदास जी और उनकी पत्नी भक्तमति आमिनी देवी की समाधियां मौजूद हैं।

जगन्नाथ पुरी में पुजारी की अग्नि से रक्षा

एक बार दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी और काशी नरेश वीर सिंह बघेल के राजभवन में कबीर साहेब और रैदास जी प्रकट हुए। कबीर साहेब ने अपने कमंडल से जल निकालकर अपने चरणों पर डाला। पूछने पर उन्होंने बताया कि जगन्नाथ पुरी में पुजारी रामसहाय के पैर गर्म खिचड़ी से जल गए थे, और वे उस ज्वलन को शांत कर रहे थे। इसकी पुष्टि के लिए दूत भेजे गए, जिन्होंने बताया कि कबीर साहेब वहां प्रतिदिन सत्संग करते हैं। इस घटना को संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में दर्ज किया है: “पंडा पांव बुझाया सतगुरु जगन्नाथ की बात है”

मूर्तिपूजा: शास्त्रानुसार उत्तम या अनुत्तम?

गीता और वेदों में मूर्तिपूजा, तीर्थ भ्रमण, या रथ यात्रा जैसी भक्ति विधियों का कोई उल्लेख नहीं है। गीता अध्याय 16, श्लोक 23-24 में स्पष्ट है कि शास्त्रविरुद्ध साधना से कोई गति प्राप्त नहीं होती। श्रीकृष्ण ने स्वयं राजा इन्द्रदमन को मंदिर में मूर्ति न रखने और गीता उपदेश की स्थापना का आदेश दिया था। मूर्तिपूजा और रथ यात्रा मनगढ़ंत परंपराएं हैं, जो भक्ति और मोक्ष से संबंधित नहीं हैं।

भवसागर से पार कैसे पाएं?

गीता अध्याय 4, श्लोक 34 में तत्वदर्शी संत की शरण लेने और उनके उपदेश ग्रहण करने का निर्देश है। गीता अध्याय 18, श्लोक 66 में पूर्ण परमेश्वर की शरण लेने की बात कही गई है, जहां जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त होता है। गीता अध्याय 8, श्लोक 16 में स्पष्ट है कि गीता का ज्ञानदाता (श्रीकृष्ण) भी जन्म-मृत्यु से मुक्त नहीं है। इसलिए पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब के प्रतिनिधि संत रामपाल जी महाराज से शास्त्रानुसार नाम दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करना चाहिए।

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FAQs: जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2025

1. जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 कब शुरू होगी?

जगन्नाथ रथ यात्रा 26 जून 2025 से शुरू होगी और 5 जुलाई 2025 को समाप्त होगी।

2. रथ यात्रा में कौन-कौन से रथ शामिल हैं?

तीन रथ शामिल हैं: तालध्वज (बलभद्र), पद्म रथ (सुभद्रा), और नंदी घोष (जगन्नाथ)।

3. जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां अधूरी क्यों हैं?

नाथपंथी सिद्ध की हठ और कबीर साहेब की शर्त के कारण मूर्तियां अधूरी रहीं, क्योंकि कमरा समय से पहले खोल दिया गया।

4. क्या जगन्नाथ मंदिर में छुआछूत है?

नहीं, कबीर साहेब के आशीर्वाद और पांडे की कथा के बाद मंदिर में छुआछूत समाप्त हो गई।

5. मूर्तिपूजा शास्त्रानुसार सही है?

गीता और वेदों में मूर्तिपूजा का कोई उल्लेख नहीं है। यह शास्त्रविरुद्ध मानी जाती है।

6. मोक्ष कैसे प्राप्त करें?

गीता अध्याय 4, श्लोक 34 के अनुसार तत्वदर्शी संत (जैसे संत रामपाल जी महाराज) से नाम दीक्षा लेकर शास्त्रानुसार भक्ति करें।

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