कबीर साहेब जी आज से लगभग 600 वर्ष पहले इस मृतमंडल अर्थात् पृथ्वी लोक पर प्रकट हुए थे। वह बचपन से ही अपने तत्वज्ञान के माध्यम से बड़े-बड़े विद्वान महापुरुषों के छक्के छुड़ा दिया करते यानि पराजित कर दिया करते थे। वैसे तो कुछ लोग कबीर साहेब जी को एक महान कवि, संत व समाज सुधारक के रूप में ही जानते है लेकिन वास्तविकता यह है कि कबीर साहिब जी वह कोई साधारण महापुरुष नहीं थे । कबीर साहेब जी पूर्ण परमेश्वर थे। उनके ज्ञान को देखा जाए तो उनके जैसा ज्ञान किसी ने नहीं दिया और ना ही दे सकता है। उनकी वाणियों को देखा जाए तो उनमें बहुत ही गहरा और गुप्त रहस्यमय ज्ञान छुपा हुआ है।
कबीर साहेब जी अपनी अमृतमय वाणियों के माध्यम से लोगों बताया कि हमें आपस में किस तरह रहना चाहिए, भक्ति किस प्रकार करनी चाहिए, हमारा आचरण व्यवहार किस प्रकार होना चाहिए। तो आईये आज के इस ब्लॉग में 625वें कबीर प्रकट दिवस पर जानिए “कबीर साहेब जी की शिक्षाएं” क्या है
![625वें कबीर प्रकट दिवस पर जानिए कबीर साहेब जी की शिक्षाएं,](https://satrangitv.in/wp-content/uploads/2023/07/20220603_074401-1024x576.jpg)
कबीर साहेब जी ने बताया मानव का परम धर्म क्या है
कबीर साहेब जी अपनी वाणी के माध्यम से बताते है कि
कहै कबीर पुकार के, दोय बात लख लेय।
एक साहेब की बंदगी, व भूखों को कुछ देय।।
अर्थात हे मानव! मैं आवाज लगाकर ऊँचे स्वर से कह रहा हूँ कि मानव शरीर प्राप्त करके दो बातों पर ध्यान दें। एक तो परमात्मा की भक्ति कर दूसरी बात है कि भूखों को भोजन अवश्य कराना चाहिए। यह मानव का परम धर्म है।
कबीर, दुबर्ल को ना सताईये, जाकि मोटी हाय।
बिना जीव की श्वांस से, लोह भस्म हो जाए।।
कबीर, ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे, आप भी शीतल होय।।
जो तोकूं काँटा बोवै, ताको बो तू फूल।
तोहे फूल के फूल है, वाको है त्रिशूल।।
यदि कोई आपको कष्ट देता है तो आप उसका उपकार करने की धारण बनाए, उसका भला करें। आपको तो सुख रूपी फूल प्राप्त होंगे और जो आपको कष्ट रूपी काँटे दे रहा था, उसको तीन गुणा कष्ट रूपी काँटे प्राप्त होंगे।
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कबीर साहेब जी मनुष्य जन्म को दुर्लभ बताया है
कबीर, मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारं-बार।
तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर ना लागे डार।।
कबीर परमात्मा जी ने समझाया है कि हे मानव शरीरधारी प्राणी! यह मानव जन्म बार-बार नहीं मिलता। इस शरीर के रहते-रहते शुभ कर्म तथा परमात्मा की भक्ति कर, अन्यथा यह शरीर समाप्त हो गया तो आप पुनः मानव शरीर को प्राप्त नहीं कर पाओगे।
कबीर, सुमिरण से सुख होत है, सुमिरण से दुःख जाए।
कहैं कबीर सुमिरण किए, सांई माहिं समाय।।
कबीर, हरि के नाम बिना, नारि कुतिया होय।
गली-गली भौकत फिरै, टूक ना डालै कोय।।
कबीर साहेब जी द्वारा नाम जाप का महत्व
कबीर साहेब जी ने भक्ति पर विशेष जोर दिया है उन्होंने बताया है कि भक्ति बहुत जरुरी है पूर्ण संत से नाम लेकर भक्ति करने से मोक्ष मिलता है । ( कबीर साहेब जी की शिक्षाएं ) कबीर साहेब जी ने बताया है
नाम सुमरले सुकर्म करले, कौन जाने कल की,
खबर नहीं पल की।।
अर्थात हे भोले मानव (स्त्राी/पुरूष)! परमात्मा का नाम जाप कर तथा शुभ कर्म कर। पता नहीं कल यानि भविष्य में क्या दुर्घटना हो जाएगी। एक पल का भी ज्ञान नहीं है।
कबीर, जिव्हा तो वोहे भली, जो रटै हरिनाम।
ना तो काट के फैंक दियो, मुख में भलो ना चाम।।
अर्थात जैसे जीभ शरीर का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यदि परमात्मा का गुणगान तथा नाम-जाप के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है तो व्यर्थ है क्योंकि इस जुबान से कोई किसी को कुवचन बोलकर पाप करता है।
कबीर, राम नाम से खिज मरैं, कुष्टि हो गल जाय।
शुकर होकर जन्म ले, नाक डूबता खाय।।
कबीर जी ने कहा है कि अभिमानी व्यक्ति राम नाम की चर्चा से खिज जाता है। फिर कोढ़ लगकर गलकर मर जाता है। अगला जन्म सूअर का प्राप्त करके गंद खाता है।
कबीर, मानुष जन्म पाय कर, नहीं रटैं हरि नाम।
जैसे कुंआ जल बिना, बनवाया क्या काम।।
मानव जीवन में यदि भक्ति नहीं करता तो वह जीवन ऐसा है जैसे सुंदर कुंआ बना रखा है। यदि उसमें जल नहीं है या जल है तो खारा है, उसका भी नाम भले ही कुंआ है, परंतु गुण कुंए वाले नहीं हैं।
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि:-
बिन उपदेश अचम्भ है, क्यों जिवत हैं प्राण।
भक्ति बिना कहाँ ठौर है, ये नर नाहीं पाषाण।।
परमात्मा कबीर जी कह रहे हैं कि हे भोले मानव! मुझे आश्चर्य है कि बिना गुरू से दीक्षा लिए किस आशा को लेकर जीवित है।
जिनको यह विवेक नहीं कि भक्ति बिना जीव का कहीं भी ठिकाना नहीं है उनकी बुद्धि पर पत्थर गिरे हैं।
कबीर, राम नाम से खिज मरैं, कुष्टि हो गल जाय।
शुकर होकर जन्म ले, नाक डूबता खाय।।
कबीर जी ने कहा है कि अभिमानी व्यक्ति राम नाम की चर्चा से खिज जाता है। फिर कोढ़ लगकर गलकर मर जाता है। अगला जन्म सूअर का प्राप्त करके गंद खाता है।
कबीर जी ने कहा है कि :-
जो जाकि शरणा बसै, ताको ताकी लाज। जल सौंही मछली चढ़ै, बह जाते गजराज।।
अर्थात जो साधक जिस राम (देव-प्रभु) की भक्ति पूरी श्रद्धा से करता है तो वह राम उस साधक की इज्जत रखता है।
कबीर, सुख के माथे पत्थर पड़ो, नाम हृदय से जावै।
बलिहारी वा दुख के, जो पल-पल नाम रटावै।।कबीर, काया तेरी है नहीं, माया कहाँ से होय। भक्ति कर दिल पाक से, जीवन है दिन दोय।।
कबीर साहेब जी द्वारा गुरु की महत्ता का वर्णन
कबीर साहेब जी पूर्ण गुरु की महत्ता का वर्णन करते हुए कहते है कि
कबीर, सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनी करूं बनराय।
धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाए।।कबीर, गुरु बड़े गोविन्द से, मन में देख विचार।
हरि सुमरे सो रह गए, गुरु भजे हुए पार।।
अर्थात यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल – वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है ।
कबीर साहेब जी की शिक्षाएं , कबीर साहेब कहते हैं कि –
सतगुरू सोई जो सारनाम दृढ़ावै, और गुरू कोई काम न आवै।
जो साधक जिस राम (देव-प्रभु) की भक्ति पूरी श्रद्धा से करता है तो वह राम उस साधक की इज्जत रखता है।
कबीर, सतगुरु (पूर्ण गुरु) के उपदेश का, लाया एक विचार।
जै सतगुरु मिलता नहीं, तो जाते यम द्वार।।
कबीर, यम द्वार में दूत सब, करते खैंचातान।
उनसे कबहु ना छूटता, फिरता चारों खान।।
कबीर, चार खान में भ्रमता, कबहु न लगता पार।
सो फेरा (चक्र) सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।।
कबीर, नौ मन सूत उलझिया, ऋषि रहे झख मार।
सतगुरू ऐसा सुलझा दे, उलझै ना दूजी बार।।
कबीर, ये तन विष की बेलड़ी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।
अर्थात यह मानव शरीर विषय-विकारों रुपी विष का घर है। गुरु तत्वज्ञान रुपी अमृत की खान है। ऐसा गुरु शीश दान करने से मिल जाए तो सस्ता जानें। शीश दान अर्थात गुरु दीक्षा किसी भी मूल्य में मिल जाए।
वेदों में प्रमाण है कबीर साहेब भगवान है