’’कबीर बड़ा या कृष्ण‘‘ नामक पुस्तक संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा लिखित है इस पुस्तक में अध्यात्म ज्ञान का विशेष विश्लेषण है जो आप जी ने कभी सुना तक नहीं होगा, न किसी पुस्तक में पढ़ा होगा। इस ब्लॉग में जानेगें कि इस्ट देव कैसा होना चाहिए ?
![कबीर बड़ा या कृष्ण](https://satrangitv.in/wp-content/uploads/2023/07/20220401_130440-scaled.jpg)
ईष्ट देव ऐसा हो
जब तक साधक को अपने पूज्य देव (इष्ट देव) की समर्थता का ज्ञान नहीं है, तब तक वह दृढ़ भक्त नहीं होता। जैसे कोई श्री हनुमान जी का पुजारी है, वह शिव जी की पूजा भी करता है। श्री विष्णु जी की भी भक्ति करता है। अन्य देवी-देवताओं, भूतों, पित्तरों की भी भक्ति करता है। इससे सिद्ध है कि उसे अपने इष्ट देव की समर्थता पर विश्वास नहीं है। यदि विश्वास हो कि मेरा इष्ट देव समर्थ है तो उसको छोड़कर अन्य की ओर देखे भी नहीं।
ईष्ट देव ऐसा हो जैसा कबीर जी ने बताया है:-
कबीर एकै साधैं सब सधै सब साधैं सब जाय। माली सीचें मूल कूँ फलै फूलै अघाय।। अर्थात् जैसे पौधे की मूल की सिंचाई करने से पौधे के सब अंग (तना, डार, शाखा, पत्ते आदि) विकसित होते हैं। यदि मूल के स्थान पर शाखाओं को जमीन में रोपकर सिंचाई करेंगे तो पौधे के सब अंग नष्ट हो जाएँगे यानि पौधा नष्ट हो जाएगा। कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। आप सब के सब मूल को छोड़कर शाखाओं की सिंचाई कर रहे हो यानि परम अक्षर ब्रह्म की पूजा न करके देवी-देवताओं की पूजा करके जन्म नष्ट कर रहे हो।
गीता अध्याय 15 श्लोक 1.3 में कहा है कि
यह संसार एक ऐसे वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें (मूल) ऊपर तथा तीनों गुण रूप शाखाएँ तना-डार आदि नीचे को हैं। ऊपर को जो जड़(त्ववज) है, उसको सबका धारण-पोषण करने वाला परमेश्वर जानो। तना को अक्षर पुरूष मानो। डार को क्षर पुरूष (ज्योति निरंजन) समझो। तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) रूपी तीनों देवता मानो। पत्तों को संसार जानो।
कबीर जी ने कहा है कि:-
कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, क्षर पुरूष वाकी डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।
अर्थात् गीता अध्याय 15 के श्लोक 1.3 में जो संकेत दिया है, उसको परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि संसार रूप वृक्ष का तना तो अक्षर पुरूष है जो सात संख ब्रह्मंडों का प्रभु (स्वामी) है। मोटी डार क्षर पुरूष है जो काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) भी कहा है जो इक्कीस ब्रह्मंडों का प्रभु है। तीनों देवता (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) उस वृक्ष की शाखा जानो। पत्तों को संसार समझो। उस संसार रूप वृक्ष की मूल स्वयं कबीर परमेश्वर है जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है। गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करने वाला परमात्मा बताया है तथा उसी को वास्तव में अविनाशी परमेश्वर कहा
है।
गीता अध्याय 15 श्लोक 16 में क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष को नाशवान प्रभु कहा है। श्लोक 17 में उनसे अन्य पुरूषोत्तम (उत्तम पुरूष) यानि श्रेष्ठ परमेश्वर बताया है। वह स्वयं कबीर परमेश्वर है जिसके विषय में संत गरीबदास जी ने कहा है कि:- गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रती नहीं भार। सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सिरजन हार।।1।। गरीब, सब पदवी के मूल हैं, सकल सिद्धि हैं तीर। दास गरीब सतपुरूष भजो, अविगत कला कबीर।।2।। हम ही अलख अल्लाह हैं, कुतब गोस और पीर। गरीबदास खालिक धनी, हमरा नाम कबीर।।3।। गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। जाति जुलाहा भेद ना पाया, काशी माहें कबीर हुआ।।4।।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने परमेश्वर के साथ जाकर ऊपर के लोकों को आँखों देखा। तब बताया था कि जो काशी शहर (भारत) में कबीर नामक जुलाहा रहता था। वह सबका सृजनहारयानि उत्पत्तिकर्ता (करतार) है। उसके पास सब सिद्धियाँ हैं। इस काल ब्रह्म के लोक में तो आठ (अष्ट) सिद्धियाँ ही हैं। जो काल ब्रह्म व तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी) की भक्ति से साधक को एक या दो ही प्राप्त होती हैं क्योंकि इन देवताओं व ब्रह्म के पास ये आठ ही सिद्धियाँ हैं। यदि सब दे दी तो इनके पुजारी इनके बराबर के शक्तिमान होकर अपनी डफली पीटेंगे। इसलिए साधकों को एक या दो ही देते हैं। कबीर परमेश्वर जी के पास अँसख्यों सिद्धियाँ हैं। इसलिए संत
गरीबदास जी ने कहा है कि उस सतपुरूष (अविनाशी परमेश्वर) कबीर को भजो जो स्वयं ही मेरे पास आए थे। परमेश्वर कबीर जी जब काशी नगर में जुलाहे की भूमिका करने आए थे, तब पंडित रामानन्द जी आचार्य से कहा था कि मैं ही वह (अलख अल्लाह) गुप्त परमेश्वर हूँ। मैं ही (कुतुब, गोस और पीर) सतगुरू, संत तथा जिंदा बाबा बनता हूँ। मैं (कबीर) ही (खालिक धनी) सारे संसार का मालिक हूँ, मेरा नाम कबीर है
सूक्ष्मवेद तथा गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 तथा 16.17 को समझने के लिए संसार रूप वृक्ष का चित्रा प्रस्तुत किया है जिसमें मूल यानि सब का धारण-पोषण करने वाला परमेश्वर कबीर दिखाया है। तना अक्षर पुरूष तथा डार क्षर पुरूष काल ब्रह्म यानि गीता व चारों वेदों का ज्ञान देने वाला दिखाया तथा तीनों गुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) रूप शाखाएँ बताई हैं। पत्ते जीव-जंतु दर्शाए हैं।
कबीर बड़ा या कृष्ण – Kabir Bada ya Krishna
संसार की संरचना समझने के लिए पेश है संसार रूप वृक्ष का चित्रा:- इस पुस्तक ‘‘कबीर बड़ा या कृष्ण’’ में श्रीमद्भगवत गीता का विश्लेषण है जो अन्य ग्रन्थों से प्रमाण देकर मजबूत किया है। इस पुस्तक में यही बताया है कि किस प्रभु व देव की कितनी शक्ति है। वह समर्थ है या नहीं। जैसे हिन्दू धर्म में श्री रामचन्द्र जी तथा श्री कृष्ण जी को परमेश्वर मानकर पूजा जाता है। ये दोनों राजा थे। राजा के पास हथियार होते हैं, सेना-सिपाही होते हैं। राजा तो अपने आप ही राम (प्रभु) होता है। जैसे श्री रामचन्द्र जी ने समुद्र पर पुल बनाकर सेना को परले पार किया था। इसी काम से उनको समर्थ प्रभु मान लिया। श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। इसी से उनकी पहचान प्रभु के रूप में हो गई। इसके विषय में कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि:-
कबीर, समन्दर पाट लंका लगा सीता का भरतार।
अगस्त ऋषि ने सातों पीये थे, इनमें कौन करतार।।
अर्थात् यदि कोई श्री रामचन्द्र पुत्रा राजा दशरथ को इसी कारण से करतार मानता है कि उन्होंने समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण करवाया था तो अगस्त ऋषि ने सातों समुद्रों को पी लिया था। इन दोनों में से किस को करतार (सृष्टि का कर्ता) मानोगे?
कबीर, गोवर्धन कृष्ण ने धारयो, द्रौणागिरी हनुमंत।
शेष नाग सब सृृष्टि उठा रहा, इनमें कौन-कौन भगवंत।।
अर्थात् गोवर्धन पर्वत को श्री कृष्ण जी ने उठाकर ब्रजवासियों की इन्द्र से रक्षा की थी। हनुमान जी ने द्रौणागिरी पर्वत को उठाया।पौराणिक व्यक्ति मानते हैं कि शेषनाग सब सृष्टि को अपने सिर रखे हुए है जिसमें पृथ्वी लोक, स्वर्ग लोक, पाताल आदि लोक हैं। इन सबको शेषनाग ने उठा रखा है। अब बताओ इनमें से किसको भगवान मानोगे ( कबीर बड़ा या कृष्ण ) ?
कबीर, काटे बंधन विपति में, कठिन कियो संग्राम।
चिन्हो रे नर प्राणियाँ, गरूड़ बड़ा या राम।।
अर्थात् श्री लंका के राजा रावण के साथ युद्ध के समय रामचन्द्र समेत सारी सेना को नागों (सर्पों) ने बाँध दिया था। गरूड़ पक्षी ने उन सब सर्पों को काटा। तब श्री राम जी का तथा सेना का बंधन कटा। उनकी जान बची। कबीर जी ने प्रश्न किया है कि अब बताओ कि श्री राम बड़ा है या पक्षी राज गरूड़? कहने का भाव यह है कि किसी देव की एक-दो लीला देखकर उससे उसको समर्थ मान लेना उचित नहीं है। जब तक उसकी जीवनी का सद्ग्रन्थों से ज्ञान नहीं है, तब तक उसे समर्थ मान लेना भ्रम भक्ति है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि जो साधक अपनी मर्जी से शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण करता है, उसको न तो सिद्धि प्राप्त हो सकती है, न उसका कार्य सिद्ध होता है, न उसकी गति होती है अर्थात् शास्त्रा प्रमाणित साधना से जीव का कल्याण संभव है।
गीता अध्याय 16 श्लोक 24 में कहा है कि हे अर्जुन! इससे तेरे लिए कर्तव्य यानि जो भक्ति के कर्म करने योग्य हैं, अकर्तव्य यानि कौन से कर्म करने योग्य नहीं हैं। उनको समझने के लिए शास्त्रा ही प्रमाण हैं। शास्त्रों में वर्णित साधना कर।
इस पुस्तक ‘‘कबीर बड़ा या कृष्ण’’ में सब प्रमाण शास्त्रों से लिखे हैं। भक्ति करके कल्याण करवाना चाहिए। दास के परमार्थी प्रयत्न को भावनाओं को ठेस पहुँचाना न मानना। यहाँ पर यह भी बताना अनिवार्य समझता हूँ कि कुछ व्यक्तियों ने मेरे विषय में भ्रम फैला रखा
है कि ये देवी-देवताओं की भक्ति छुड़वाता है। यह बिल्कुल गलत है। मैं सर्व देवताओं की शास्त्रोक्त साधना करने की राय देता हूँ जिससे साधक को यथार्थ लाभ मिलता है तथा पूर्ण परमात्मा को ईष्ट रूप में पूजा करने की राय देता हूँ जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वर्तमान जीवन में भी अनेकों लाभ होते हैं जो परमात्मा से अपेक्षा की जाती है।