नमस्कार जी सतरंगी टीवी के इस नये ब्लॉग में आपका स्वागत है आज हम जानेंगे कि बुध्द पूर्णिमा ( Buddha Purnima 2022 ) : क्यों मनाया जाता है तथा साथ ही साथ इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानेंगे .
![बुध्द पूर्णिमा 2022](https://satrangitv.in/wp-content/uploads/2022/05/20220926_144323-1024x576-1.jpg)
बुध्द पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है
मित्रों बुद्ध पूर्णिमा , बौद्धों के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है । बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन ही महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका निर्वाण (निधन) भी हुआ था। महात्मा गौतम बुद्ध के जन्म के उपलक्ष्य में ही बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। बुद्ध पूर्णिमा हर साल मुख्यतः बोधगया और सारनाथ में मनाई जाती है। इसके साथ ही भारत के कई अन्य बौद्ध क्षेत्रों जैसे सिक्किम, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर बंगाल के क्षेत्रों कालिमपोंग, दार्जिलिंग और कुर्सेओंग आदि में भी इसको त्योहार की तरह मनाया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा कब है – तिथि व् समय
हर साल की तरह इस साल भी वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जायेगा । इस साल बुद्ध पूर्णिमा ( Buddha Purnima 2022 ) 16 मई, 2022 दिन सोमवार को है। इस दिन महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं और उनके शिष्यों के संघ के सम्मान में स्तुति की जाती हैं। साथ ही बौद्ध अनुयायी विशेष तौर पर इस दिन सफेद कपड़े पहनते हैं और ध्यान (Meditation) में अपना दिन व्यतीत करते हैं तथा हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं ।
तिथि : 16 मई 2022
समय : रविवार 15 मई को 12:45 PM से लेकर सोमवार 16 मई 2022 को 09:45 AM
कौन थे महात्मा गौतम बुध्द
बौध्द धर्म के संस्थापक व एशिया का ज्योतिपुंज कहे जाने वाले महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णमासी को नेपाल के कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक जगह पर 563 ईसा पूर्व क्षत्रिय कुल में इसी दिन हुआ था ( इसलिए इस दिन को बुध्द पूर्णिमा 2022 भी कहा जाता है ) । इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम माया देवी था। इनकी माता की मृत्यु इनके जन्म के सातवें दिन ही हो गयी थी जिसके बाद इनका पालन पोषण इनकी सौतेली माता प्रजापति गौतमी ने किया। इनके पिता शाक्यगण के मुखिया थे तथा राजकुमार होने के कारण बुद्ध की परवरिश पूरे राजसी ठाठ-बाठ से हुई। 16 वर्ष की आयु में बुद्ध का विवाह यशोधरा के साथ हुआ। कुछ वर्ष पश्चात उनको पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।
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महात्मा गौतम बुद्ध का मन बचपन से ही राजपाट में नहीं लगता था तथा हमेशा उनको एकांत में बैठा हुआ देखा जाता था।
वास्तव में गौतम बुद्ध विष्णु लोक से आई हुई आत्मा थी। ( कुछ लोग गौतम बुध्द को विष्णुं का नौवा अवतार मानते हैं ) यही कारण था कि सभी राजसी ठाठ उपलब्ध होने के बाद भी उन्हें यहां के सभी सुख फीके से लगते थे ।
गौतम बुध्द का गृहत्याग
एक दिन महात्मा बुद्ध को कपिलवस्तु की सैर की इच्छा हुई और वे अपने सारथी को साथ लेकर सैर पर निकले। मार्ग में चार दृश्यों ( बूढ़ा व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, शव, एक सन्यासी ) को देखकर घर त्याग कर सन्यास लेने का प्रण लिया।
चारों दृश्यों को देखकर गौतम सिध्दार्थ ( गौतम बुद्ध ) का मन विचलित हो गया तो उनके सारथी ने उन्हें बताया कि ये जीवन का कटु सत्य है। हर व्यक्ति को एक दिन बूढ़ा होना है और बुढ़ापा अपने साथ रोग लेकर आता है। इसके पश्चात मृत्यु का आना भी एक परम सत्य है। इन दृश्यों को देखने के उपरांत बुद्ध इस जन्म मरण के चक्र तथा मनुष्यों के दुखों का कारण और उसका समाधान ढूंढने के लिए व्याकुल हो उठे। बुध्द अपने महल आये। सब कुछ भोग विलास त्यागकर सन्यासी बनने का मन बना लिया । वह अपनी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल को छोड़कर 29 वर्ष की अवस्था में वन में चले गये । बौद्धधर्म में उनके गृहत्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा गया। बुध्द ने कई वर्षों तक कठोर तप, हठयोग साधना की । लगभग 35 वर्ष की अवस्था में गौतम बुध्द को बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे कुछ ज्ञान की प्राप्ति वैशाख महीने की पूर्णिमा को हुई इसलिए बौध्द अनुयायी हर साल वैसाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा ( Buddha Purnima 2022 ) के रूप मानते हैं ।
बुध्द पूर्णिमा पर जानिए हठयोग साधना सही या गलत
गीता जी के अध्याय 3 श्लोक 8 में, घर त्याग कर, हठयोग साधना करने को निषेध बताया है और कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करते-करते भक्ति कर्म करने को श्रेष्ठ बताया है।
कबीर साहेब जी भी बताते है कि:
जब तक गुरु मिले न साचा, तब तक गुरू करो दस पांचा।।
मनुष्य जीवन में गुरु का बहुत महत्व है। एक गुरु ही है जो मानव जीवन को अनमोल बनाता है और जन्म मृत्यु के रोग से छुटकारा दिला सकता है। परंतु अफसोस बुद्ध को उनके जीवनकाल में कोई आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला सच्चा गुरु नही मिला। परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने सत्संग में बताते हैं कि पिछले पुण्य कर्मों वाली आत्मा परमात्मा को ढूंढें बिना नहीं रह पाती। तब माया भी उसके पैरों में बेड़ी नहीं डाल सकती।
परमेश्वर के अस्तित्व को नकारना इंसान की नादानी है
बौद्धधर्म जिस तप और ध्यान को मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग कहता है, उसके बारे में श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय न.17 के श्लोक 5 में कहा है:-
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
गीता के अध्याय न.17 का श्लोक 5
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥
अथार्त् जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त हैं। गीता में घोर तप तथा ध्यान साधना को गलत बताया है।
पूर्ण परमेश्वर हर युग में या तो खुद आते हैं या अपना नुमाइंदा भेजते हैं, जो तत्वज्ञान से साधक को परिचित करवाकर शास्त्र अनुकूल मोक्ष दायक साधना प्रदान करते हैं। उस तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय न. 15 श्लोक 1 से 4 में वर्णित है, जिसमें उल्टे लटके वृक्ष का वर्णन है। जिसके बारे में गीता ज्ञान दाता ने साफ कहा है कि जो संत इस उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी विभागों का वर्णन ठीक ठीक कर देगा वही तत्वदर्शी संत होगा।
आज वर्तमान समय में एकमात्र पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी है जो शात्र के अनुकूल सही सतभक्ति विधि बता रहे है ।इस्नके ज्ञान को समझे और नाम दीक्षा लेकर अपना कल्याण करवाएं । अधिक जानकारी के लिए विजिट करें www.jagatgururampalji.org