नमस्कार दोस्तों कबीर साहेब जी को कौन नहीं जानता अगर उनकेे जीवन के बारें में हम बात करें तो सबका अलग – अलग मत है। कुछ का कहना है कि कबीर साहेब जी का जन्म विधवा स्त्री के गर्भ से महर्षि रामानन्द जी के आशीर्वाद से हुआ था अर्थात कबीर साहेब जी विधवा ब्राम्हणी के पुत्र थे, जिसने लोक लाज के कारण लहरतारा तालाब में छोड़ दिया था। जहां पर नीरू और नीमा दंपति ( पति – पत्नी ) नामक मुसलमान को मिले लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है । आईये जानते है कबीर साहेब जी का यथार्थ संक्षिप्त परिचय ( कबीर साहेब जी कौन हैं – Kabir Saheb Ji )।
![कबीर साहेब जी कौन हैं - Kabir Saheb](https://satrangitv.in/wp-content/uploads/2023/07/20220528_092534-1024x576.jpg)
कबीर साहेब जी का अवतरण ( Kabir Saheb Ji Prakat Diwas )
गगन मंडल से उतरे सतगुरु सत कबीर, जल माहीं पौड़न सब पिरन के पीर
कबीर साहेब जी ( Kabir Saheb Ji ) ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को भी ब्रह्म मुहूर्त (ब्रह्म महूर्त का समय सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले होता है) के समय काशी के लहरतारा तालाब में एक विकसित कमल के फूल पर सतलोक से आकर शिशु रूप में प्रकट हुए वहां निसंतान दंपत्ति नीरू और नीमा को मिले जिसके प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानन्द जी थे । बालक कबीर साहेब जी को लेकर नीरू तथा नीमा अपने घर जुलाहा मौहल्ला (कालोनी) में आए। जिस भी नर व नारी ने नवजात शिशु रूप में परमेश्वर कबीर साहेब जी को देखा वह देखता ही रह गया। परमेश्वर (कबीर साहेब जी ) का शरीर अति सुन्दर था। पूरी काशी नगरी में ऐसा अद्धभुत बालक नहीं था। जो भी देखता वहीं अन्य को बताता कि नूर अली को एक बालक तालाब पर मिला है आज ही उत्पन्न हुआ शिशु है। डर के मारे लोक लाज के कारण किसी विधवा ने डाला होगा। बालक को देखने के पश्चात् उसके चेहरे से दृष्टि हटाने को दिल नहीं करता, आत्मा अपने आप खिंची चली जाती है। पता नहीं कैसा जादू है बालक के मुख पर । पूरी काशी परमेश्वर के बालक रूप को देखने को उमड़ पड़ी। स्त्राी-पुरूष झुण्ड के झुण्ड बना कर मंगल गान गाते हुए, नीरू के घर बच्चे को देखने आए।
बच्चे (कबीर परमेश्वर) को देखकर कोई कह रहा था, यह बालक तो कोई देवता का अवतार है, कोई कह रहा था। यह तो साक्षात् विष्णु जी ही आए लगते हैं। कोई कह रहा था यह भगवान शिव ही अपनी काशी नगरी को कृतार्थ करने को उत्पन्न हुए हैं। कोई कह रहा था। यह तो किन्नर का अवतार है, कोई कह रहा था। यह पितर नगरी से आया है। यह सर्व वार्ता सुनकर नीमा अप्रसन्न हो कर कहती थी कि मेरे बच्चे के विषय में कुछ मत कहो। हे अल्लाह! मेरे बच्चे की रक्षा करना ।
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कबीर साहेब जी जिस दिन इस पृथ्वी पर अपने निज धाम सतलोक से चलकर आये थे उस दिन को ही कबीर साहेब प्रकट दिवस ( Kabir Saheb Ji Prakat Diwas ) या कबीर साहेब जी अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है । ( कबीर साहेब जी कौन हैं – Kabir Saheb Ji )
शिशु कबीर साहेब जी का नामांकन
मित्रों जब शिशु कबीर साहेब जी ( Kabir Saheb Ji ) का नामांकन करने की बारी आया तो काशी के ब्राह्मण लड़के का नाम रखने आए क्योंकि नीरू (नूर अली) तथा नीमा पहले हिन्दु ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। उसी समय काजी मुसलमान अपनी पुस्तक कुरान शरीफ को लेकर लड़के का नाम रखने के लिए आ गए। उस समय दिल्ली में मुगल बादशाहों का शासन था जो पूरे भारतवर्ष पर शासन करते थे। जिस कारण हिन्दु समाज मुसलमानों से दबता था। काजियों ने कहा लड़के का नाम करण हम मुसलमान विधि से करेंगे अब ये मुसलमान हो चुके हैं।
यह कह कर काजियों में मुख्य काजी ने कुरान शरीफ पुस्तक को कहीं से खोला उन पृष्ठों पर कबीर-कबीर-कबीर अक्षर ही लिखा था। काजियों ने पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्रा करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले
हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्लाह अर्थात् अल्लाहुअकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
काजियों ने अपने साथ लाई कुरान को वहीं पटक दिया तथा चले गए। बोले इस बच्चे में कोई प्रेत आत्मा बोल रही है।
कबीर साहेब जी की लीलाएं
कबीर साहेब जी ( Kabir Saheb Ji ) ने अपने जीवन काल में अनेकों लीलाएं की । कबीर साहेब जी की परवरिश कुवारी गाय के दूध से हुआ जिसका प्रमाण कबीर सागर तथा वेदों में है । जब शिशु रूपधारी कबीर साहेब जी की सुन्नत करने के लिए नाई कैंची लेकर गया तो परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने लिंग के साथ एक लिंग और बना लिया। फिर उस सुन्नत करने को तैयार व्यक्ति की आँखों के सामने तीन लिंग और बढ़ते दिखाए कुल पाँच लिंग एक बालक के देखकर वह सुन्नत करने वाला आश्चर्य में पड़ गया। तब कबीर जी शिशु रूप में बोले भईया एक ही लिंग की सुन्नत करने का विधान है ना मुसलमान धर्म में। बोल शेष चार की सुन्नत का क्या करना है? जल्दी बोल! शिशु को ऐसे बोलते सुनकर तथा पाँच लिंग बालक के देख कर नाई ने अन्य उपस्थित व्यक्तियों को बुलाकर व अद्धभुत दृश्य दिखाया । कबीर साहेब जी की सुन्नत का असफल प्रयास हुआ । एसे ही अनेको लीलाएं किये तथा समाज में फैली कुरीतियों व् अंधविश्वास का जोरदार विरोध किया । ( कबीर साहेब जी कौन हैं – Kabir Saheb Ji )
कबीर साहेब जी का सतलोक गमन
कबीर साहेब जी अपने अंतिम समय में लगभग 120 वर्ष की आयु में अपने निज धाम सतलोक सशरीर चले गये ।
काशी में एक भ्रम फैला था कि जो काशी में मरेगा वह सीधा स्वर्ग जायेगा और जो मगहर में मरेगा वह नरक में जायेगा । बन्दी छोड़ ( कबीर साहेब जी ) कहते थे कि सही विधि से भक्ति करने वाला प्राणी चाहे वह कहीं पर प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर जाएगा।
इस भ्रम को तोड़ने के लिए उन नादानों का भ्रम निवारण करने के लिए कबीर साहेब ने कहा कि मैं मगहर में मरूँगा और सभी ज्योतिषी देख लेना कि मैं कहाँ जाऊँगा? नरक में जाऊँगा या स्वर्ग से भी ऊपर सतलोक में।
कबीर साहेब ने कांशी से मगहर के लिये प्रस्थान किया। वहा पर आमी नदी जो शंकर जी के श्राप के कारन सुखी हुई थी उसे कबीर साहेब जी ने अपने आशीर्वाद जलाजल कर दिया और स्नान किया ।
कबीर साहेब ने कहा कि एक चदद्र नीचे बिछाओ, एक मैं ऊपर ओढ़ूँगा। (क्योंकि वे तो जानी जान थे) कहने लगे कि ये सेना कैसे ला रखी है तुमने? अब बिजली खाँ पठान और बीर सिंह बघेला आमने-सामने खड़े है । उन्होंने तो मुँह लटका लिया और बोले नहीं। वे दूसरे हिन्दु और मुसलमान बिना नाम वाले बोले कि जी हम आपका अंतिम संस्कार अपनी विधि से करेंगे।
दूसरे कहते हैं कि हम अपनी विधि से करेंगे। चढा ली बाहें, उठा लिए हथियार तथा कहने लगे कि आ जाओ। कबीर साहेब ने कहा कि नादानों क्या मैंने यही शिक्षा दी थी 120 वर्ष तक। इस मिट्टी का तुम क्या करोगे? चाहे फूंक दो या गाड दो, इससे क्या मिलेगा? तुमने क्या शिक्षा ली मेरे से? सुन लो यदि झगड़ा कर लिया तो मेरे से बुरा नहीं होगा।
वे जानते थे कि ये कबीर साहेब परम शक्ति युक्त हैं। यदि कुछ कह दिया तो बात बिगड़ जाएगी। शांत हो गये पर मन में यही थी कि शरीर छोड़ने दो, हमने तो यही करना है। वे तो जानी जान थे। उस दिन गृहयुद्ध शुरू हो जाता, सत्यानाश हो जाता, यदि साहेब अपनी कृपा न बख्सते। कबीर साहेब ( Kabir Saheb Ji ) ने कहा कि एक काम कर लेना तुम मेरे शरीर को आधा-आधा काट लेना। परन्तु लड़ना मत। ये मेरा अंतिम आदेश सुन लो और मानो, इसमें जो वस्तु मिले उसको आधा आधा कर लेना।
महिना माघ शुक्ल पक्ष तिथि एकादशी वि. स. 1575 (एक हजार पाँच सौ पचहतर) सन् 1518 को कबीर साहेब ने एक चद्दर नीचे बिछाई और एक ऊपर ओढ़ ली। कुछ फूल कबीर साहेब के नीचे वाली चद्दर पर दो इंच मोटाई में बिछा दिये। थोड़ी सी देर में आकाश वाणी हुई कि मैं तो जा रहा हूँ सतलोक में (स्वर्ग से भी ऊपर)। देख लो चद्दर उठा कर इसमें कोई शव नहीं है। जो वस्तु है वे आधी-आधी ले लेना परन्तु लड़ना नहीं। जब चदद्र उठाई तो सुगंधित फूलों का ढेर शव के समान ऊँचा
मिला।
बीर देव सिंह बघेल और बिजली खाँ पठान एक दूसरे के सीने से लग कर ऐसे रोने लगे जैसे कि बच्चों की माँ मर जाती है। फिर तो वहाँ पर रोना-धोना मच गया। हिन्दु और मुसलमानों का प्यार सदा के लिए अटूट बन गया। एक दूसरे को सीने से लगा कर हिन्दू और मुसलमान रो रहे थे। कहने लगे कि हम समझे नहीं। ये तो वास्तव में अल्लाह आए हुए थे। और ऊपर आकाश में प्रकाश का गोला जा रहा था। तो वहाँ मगहर में दोनों धर्मों (हिन्दुओं तथा मुसलमानों) ने एक-एक चद्दर तथा आधे-आधे सुगंधित फूल लेकर सौ फूट के अंतर पर एक-एक यादगार भिन्न-भिन्न बनाई जो आज भी विद्यमान है तथा कुछ फूल लाकर
कांशी में जहाँ कबीर साहेब एक चबूतरे(चैरा) पर बैठकर सतसंग किया करते वहाँ कांशी चैरा नाम से यादगार बनाई। अब वहाँ पर बहुत बड़ा आश्रम बना हुआ है। मगहर में दोनों यादगारों के बीच में एक सांझा द्वार भी है, आपस में कोई भेद-भाव नहीं है।
आशा करते है आज के इस ब्लॉग ( कबीर साहेब जी कौन हैं – Kabir Saheb Ji ) में आपको कुछ जानने को मिला होगा । अधिक जानकारी के लिए visit करें www.jagatgururampalji.org
Kabir is supreme power who destroy our sins