जैसी संगत वैसी रंगत – Story in Hindi

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नमस्कार दोस्तों वो कहते है न “संगत का असर होता है, जैसी आपकी संगत होगी वैसे ही आपमे गुण आएगा वो संगत अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी” आज हम आपके लिए एक अनोखी कहानी लेकर आयें है आशा करते है आपको यह कहानी ( जैसी संगत वैसी रंगत – Story in Hindi ) बहुत पसंद आएगी तो चलिए कहानी कि शुरुआत करते है 

जैसी संगत वैसी रंगत - Story in Hindi

साधु से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना – Hindi Story

जैसी संगत वैसी रंगत – [Story in Hindi]: एक बार की बात है एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था। उसके विवाह को दस-बारह वर्ष हो चुके थे। उसके संतान नहीं हुई थी। उसी गाँव से बाहर लगभग दो कि.मी. की दूरी पर एक आश्रम था। उसमें एक सिद्ध संत रहता था। वह गाँव में से भिक्षा माँगकर लाता था। उसको तीन-चार या अधिक दिन खाता रहता था। एक दिन वह उस घर से भिक्षा लेने गया जिस व्यक्ति को कोई संतान नहीं थी। स्त्राी-पुरूष दोनों ने साधु जी से पुत्र प्राप्ति के लिए चरण पकड़कर प्रार्थना की।

साधु द्वारा पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देना – Story in Hindi

साधु ने कहा कि एक शर्त पर संतान हो सकती है।

स्त्राी-पुरूष ने पूछा कि बताओ।

साधु ने कहा कि प्रथम पुत्रा उत्पन्न होगा। दो वर्ष होने के पश्चात् मुझे चढ़ाना होगा। उसे मैं अपना उत्तराधिकारी बनाऊँगा। आपको मंजूर हो तो बताओ। उसके पश्चात् लड़की होगी। फिर एक पुत्रा होगा।

दोनों ने उस शर्त को स्वीकार कर लिया। साधु के आशीर्वाद से दसवें महीने पुत्रा हुआ। दो वर्ष का होने पर साधु को सौंप दिया। उस समय स्त्राी फिर गर्भवती थी। उसने कन्या को जन्म दिया। फिर एक पुत्र और हुआ। जिस कारण से साधु की महिमा और अधिक हो गई।

लड़के द्वारा भिक्षा लेने जाना – Hindi Story

जैसी संगत वैसी रंगत – [Story in Hindi]: उस आश्रम में युवा लड़कियों का प्रवेश निषेध था। जब वह लड़का सोलह वर्ष का हुआ तो एक दिन गुरू जी को छाती में स्तन के पास फोड़ा हो गया। जिस कारण साधु जी दर्द के कारण व्याकुल रहने लगा। जड़ी-बूटी बनाकर उस फोड़े पर लगाई। चार-पाँच दिन में वह फोड़ा फूटकर ठीक हुआ। तब साधु सामान्य हुआ। कुछ दिन के पश्चात् साधु को बुखार हो गया। वृद्धावस्था व बुखार के कारण उत्पन्न कमजोरी की वजह से चलने-फिरने में असमर्थ हो गया। साधु ने उस शिष्य को कभी गाँव में भिक्षा लेने नहीं भेजा था। यह विचार करके कि कहीं जवान लड़का गाँव में लड़कों के साथ बैठकर बुरी संगत में पड़कर कोई गलती न कर दे। कहीं विवाह करने की प्रेरणा न हो जाए। परंतु उस दिन विवश होकर साधु ने अपने शिष्य से कहा कि बेटा! भिक्षा माँगकर ला और गाँव में प्रथम गली में चैथे घर से जो मिले, उसे लेकर आ जाना, आगे मत जाना।

लड़का गुरूजी के आदेशानुसार उसी घर के द्वार पर गया और बोला, अलख निरंजन! उस घर से एक 14 वर्षीय लड़की भिक्षा डालने के लिए द्वार पर आई तो साधु लड़का उस लड़की की छाती की ओर गौर से देख रहा था। लड़की ने देख लिया कि साधु की दृष्टि में दोष है। लड़की बोली कि ले बाबा भिक्षा। साधु बोला, हे माई की बेटी! तेरी छाती पर दो फोड़े हुए हैं। आप आश्रम में आ जाना। तेरे फोड़े गुरू जी ठीक कर देंगे। हे माई की बेटी! आपको बहुत पीड़ा हो रही होगी। मेरे गुरू जी को तो एक ही फोड़े ने दुःखी कर रखा था। यह बात लड़के साधु से सुनकर लड़की का अंदाजा और दृढ़ हो गया कि यह साधु नेक नहीं है। लड़की ऊँची-ऊँची आवाज में बोलने लगी कि अपनी माँ-बहन के फोड़े ठीक करा ले, बदतमीज! तेरे को जूती मारूंगी। यह कहकर लड़की ने पैर की जूती निकाल ली और बोली चला जा यहाँ से, फिर कभी मत आना। शोर सुनकर लड़की की माता भी द्वार पर आई और पूछा कि बेटी! क्या बात है? लड़की ने उस साधु की करतूत माता को बताई। माता ने पूछा कि बाबा जी! कहाँ से आये हो? लड़के साधु ने बताया कि इस आश्रम से आया हूँ। मेरे गुरू जी बीमार हो गए हैं, चलने-फिरने में असमर्थ हैं। इसलिए पहली बार मुझे भिक्षा लाने भेजा है। मैं उनका शिष्य हूँ । मैंने तो इस बहन से पूछा था कि तेरी छाती पर दो फोड़े हैं, बहुत दुःखी हो रही होगी। मेरे गुरू जी को तो एक ही फोड़ा हुआ था, दिन-रात दर्द से व्याकुल रहते थे। वे औषधि जानते हैं। आप गुरू जी के पास जाकर फोड़े ठीक करा लो। वह साधु लड़का उसी स्त्राी का बेटा था जो साधु को चढ़ा रखा था। वह लड़की उस साधु बाबा की छोटी बहन थी। माता ने बताया कि यह तेरा भाई है जो हमने साधु को चढ़ा रखा है। यह दुनियादारी की खराब बातों से बचा है। इसको कुछ भी पता नहीं है। जो दोष बेटी तुझे लगा, वह इस तेरे भाई में नहीं है। यह तो पाक-साफ आत्मा से बोल रहा था। तूने गाँव के चंचल युवकों वाली शरारत के अनुसार विचार करके धमकाया।

माई ने बताया कि साधु जी! मेरी बेटी की छाती पर फोड़े नहीं हैं। ये दूधी हैं, देख! जैसे मेरी छाती पर हैं। इसका विवाह करेंगे। इसको संतान उत्पन्न होगी। तब इन दूधियों से इससे बच्चे दूध पीऐंगे। साधु बच्चा बोला, हे माई! इसका विवाह कब होगा? कब इसको संतान होगी? माई ने बताया कि कभी तीन-चार वर्ष के पश्चात् विवाह करेंगे। फिर दो-तीन वर्ष पश्चात् संतान होगी।

साधु लड़के ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विचार किया कि परमात्मा को जन्म लेने वाले बच्चे की कितनी चिंता है। उसके जन्म से 7.8 वर्ष पूर्व ही दूध पीने की व्यवस्था कर रखी है। क्या वह हमारे खाने की व्यवस्था आश्रम में नहीं करेगा? हम तो गुरू-शिष्य उस परमात्मा के भरोसे बैठे हैं। आज के बाद भिक्षा माँगना बंद। यह
विचार कर रहा था कि माई ने पूछा, बाबा जी! क्या चिंता कर रहे हो? साधु बोला कि माई चिंता समाप्त। यह कहकर भिक्षा सहित झोली (थैला) गली में फैंककर आश्रम खाली हाथ आया तो गुरू जी ने पूछा कि भिक्षा क्यों नहीं लाया? झोली किसी ने छीन ली क्या? लड़के ने बताया कि गुरू जी! जब परमात्मा बच्चे के जन्म लेने से 7.8 वर्ष पूर्व ही सर्व खाने की व्यवस्था करता है तो क्या अपनी आश्रम में
नहीं करेगा? अवश्य करेगा। इसलिए मैं झोली गली में फैंक आया। साधु समझ गया कि यह कामचोर रास्ते में झोली फैंककर आ गया कि रोज भिक्षा लेने जाना पड़ेगा। साधु विवश था, कुछ नहीं बोला। सोचा कि कल मैं दुःखी-सुखी होकर जैसे-तैसे स्वयं भिक्षा लाऊँगा।

Also read in English: Jaisi Sangat Vaisi Rangat – English Story

परमात्मा की प्रेरणा से भोजन की व्यवस्था – Hindi story

जैसी संगत वैसी रंगत – [Hindi Story]: जब साधु बालक झोली तथा भिक्षा गली में फैंककर आश्रम में चला गया तो परमात्मा ने नगर के कुछ व्यक्तियों में प्रेरणा की कि बड़े बाबा अस्वस्थ हैं। छोटे बाबा को किसी ने कुछ कह दिया, वह भिक्षा व झोली दोनों फैंककर चला गया। साधु भूखा है, बच्चा भी भूखा रहेगा। यह विचार करके अच्छा भोजन तैयार किया। खीर-फुल्के-दाल बनाकर पहले एक लेकर पहुँचा और साधु से कहा कि छोटा बाबा जी किसी के कहने पर रूष्ट होकर भिक्षा नहीं लाया। झोली-भिक्षा फैंक आया। आप
भोजन खाओ। साधु ने कहा कि पहले बालक को खिलाओ। बालक बोला कि पहले गुरू जी खाऐंगे, फिर चेला खाएगा। साधु भोजन खाने लगा। इतने में दूसरा हलवा-पूरी-छोले लेकर आ गया। इस प्रकार लगभग दस व्यक्ति गाँव के यही विचार करके भोजन लेकर आश्रम में पहुँचे। चेला बोला कि वाह भगवान! हमें पता नहीं था कि आप कितने अच्छे हो। इसीलिए आपके नाम की चिंता कम भोजन की
अधिक रहती थी। गाँव वालों ने नम्बर बाँध लिया कि एक दिन एक घर से साधुओं का भोजन भेजा जाए। ऐसा ही हुआ।

कहानी से शिक्षा

शिक्षा:- जैसी संगत, वैसी रंगत। अपना दोष दूसरे में दिखता है। परमात्मा पर विश्वास बिना भक्त अधूरा है। माँगकर खाना भी शास्त्राविरूद्ध है क्योंकि यदि भक्त की श्रद्धा तथा भावना सच्ची है तो परमात्मा व्यवस्था कर देता है। परंतु गृहस्थी के कर्म करके भोजन ग्रहण करना सर्वोत्तम है। साधु-संत का कर्म सत्संग करना, भक्ति करना है। यदि सच्ची श्रद्धा से करता है तो उसे माँगने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

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